मस्जिद में नमाज़ की जमाअत में पांच व्यक्तियों की पाबंदी लगाने का निर्णय अव्यवहारिक और अनुचित है: जमीयत उलमा ए हिंद।

इस निर्णय पर पुनर्विचार करे केन्द्र और यूपी सरकार:मौलाना महमूद मदनी 


नई दिल्ली (प्रेस रिलीज़ ) 
जमीयत उलमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना  क़ारी सैयद मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी व महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने यूपी सरकार की तरफ से मस्जिद में नमाज़ पढ़ने के लिए जमाअत में पांच व्यक्तियों की क़ैद (पाबंदी) लगाने को अव्यवहारिक और अनुचित ठहराया है। उन्होंने कहा है कि सभी धर्मों की इबादत, पूजा अर्चना करने के तरीके अलग-अलग होते हैं। जहां तक मस्जिद का मामला है तो मस्जिद में नमाज़ सामूहिक तरीके से अदा की (पढ़ी) जाती है। यह कोई निजी या व्यक्तिगत  कार्य - व्यवहार नहीं है और न ही मस्जिद में दोबारा जमाअत  की जाती है। ऐसी स्थिति में एक जमात में पांच लोगों की पाबंदी लगाना न सिर्फ यह कि कठिनाई उत्पन्न करने वाला कार्य है बल्कि सरकार की ओर से अनलॉक- 2 के अंतर्गत जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में दी गई छूट - सुविधाओं के भी विपरीत है। उन्होंने कहा कि मस्जिदों के ज़िम्मेदारों को यह लगता है कि मस्जिदों को लेकर ज्यों की त्यों स्थिति बनाए रखने का प्रयास किया गया है। जब शॉपिंग मॉल्स, बाज़ार यहां तक कि सरकारी कार्यालय और यातायात में संख्या की कोई बाध्यता नहीं है तो फिर इबादत घरों में इस तरह का प्रतिबंध लगाने का क्या औचित्य है-? मस्जिदों में हर प्रकार के स्वास्थ्य निर्देशों का पालन किया जा रहा है। सोशल डिस्टेंसिंग का भी ध्यान रखा जा रहा है। इसके अतिरिक्त नमाज़ के समय एक व्यक्ति पूरी तरह से स्वच्छ एवं पवित्र होता है। अपने हाथ, पैर और मुंह को भी धोता है। ऐसे में सरकार के इस निर्णय को जमीयत उलमा ए हिंद गलत और अनुचित मानती है और  सरकार, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश सरकार से अपील करती है कि वह अपने इस निर्णय पर पुनर्विचार करे। और मस्जिद में सोशल डिस्टेंसिंग की शर्त के साथ सभी को नमाज़ पढ़ने की अनुमति दी जाए। सरकार का यह वर्तमान निर्णय हर स्थिति में अस्वीकार्य और अव्यवहारिक है।